सीधे बैठिये और चमत्कार देखिये जीवन में कुछ करके दिखाना चिकित्सा प्रणाली के आवश्यक नियमों

सीधे चमत्कार जीवन में कुछ करके जीवन में कुछ करके दिखाना चाहते हैं तो मेरुदण्ड को सीधा रखिये। मेरुदण्ड रीढ़ की हड्डी हमारे शरीर में । अपना एक महत्वपर्ण स्थान रखती हैरीढ़ की हड्डी छोटे-छोटे बत्तीस भागों में विभक्त है और वह एक-एक भाग, हमारे शरीर के अलग-अलग भागों से भिन्न-भिन्न प्रकार का सम्बन्ध रखता है। मेरुदण्ड रीढ़ की हड्डी के किसी भी एक भाग विशेष में यदि द्विजातीय द्रव्य एक्सट्रा मैटर आ जाने पर, उस भाग विशेष में खराबी उत्पन्न हो जाती हैफलतः उस भाग से सम्बन्धित शरीर के विशेष अंग (हिस्से) में कम या ज्यादा खराबी (रोग) उत्पन्न हो जायेगाचिकित्सा शास्त्रियों, योगियों एवं आधुनिक वैज्ञानिकों ने आज यह अच्छी प्रकार जान लिया है कि हमारी रीढ़ की हड्डी (मेरुदण्ड) सर्वाधिक संवेदनशील, मनुष्य शरीर का स्थान विशेष हैजिस व्यक्ति की रीढ़ की हड्डी (मेरुदण्ड) जितना अधिक विजातीय द्रव्यों से रहित होगा, उतना ही अच्छा, उस व्यक्ति का सम्पूर्ण स्नायुमंडल, मन-मस्तिष्क सहित सम्पूर्ण स्वास्थ्य भी अच्छा और सुन्दर होगा।


इसमें ' तनिक भी अतिश्योक्ति नहीं है हम सबको अपने सम्पूर्ण प्रयत्नों के द्वारा ' शरीर के मेरुदण्ड को ठीक रखने का भरसक प्रयत्न चाहिए इसके लिएप्रत्यक्ष उदाहरण है-सर्कस में नये नये कलाबाजियों को दिखाने वाले लड़के लड़कियों की देहयष्टि, ही सम्पूर्ण शारीरिक सौन्दर्य पर एक विहंगम दृष्टिपात करिये, बस रीढ़ की हड्डी का रहस्य, चमत्कार आपके सामने प्रत्यक्ष हो जायेगा।


सर्कस में काम करने वाले उन युवा एवं युवतियों के शरीर व आकर्षण एवं सौन्दर्य एवं उनके शरीर के गठन को देखकर समस्त दर्शकों को ईर्ष्या होने लगती है कि हमारा शरीर भी ऐसा ही होता। आज सभी व्यक्ति भूत, भविष्य, वर्तमान में सर्वदा अपने आपको, हर स्त्री-पुरुष, बालक आकर्षक सुन्दर, ' लावण्यतायुक्त, प्रभावशाली व्यक्तित्व, सुगन्धित रोग मुक्त शरीर प्रसन्न, प्रफुल्लित, मनमर्जी एक साथ ही तरोताजा सम्पूर्ण स्नायुमंडल आनन्द के सागर में सम्पूर्ण जीवन सराबोर रहने की कहने का तात्पर्य है कि मेरुदण्ड रीढ़ की हड्डी में स्थित गुप्त शक्तियों का चमत्कार देखने के लिए रीढ चिकित्सा प्रणाली के आवश्यक नियमों को अपनाना पड़ेगा।


उसके लिए कुछ योगासन जिनमें सबसे अधिक सप्तचक्र चमत्कारी योगासन रीढ़ की हड्डी का स्नान, रीढ़ की हड्डी की यौगिक मसाज 'आदि सम्पूर्ण क्रियायें करके बहुत बढ़िया परिणाम देखे जा सकते हैंसर्वप्रथम रीढ़ की हड्डी मेरुदण्ड के सम्बन्ध में और उसके अनोखे रहस्यों को उजागर करने के लिए सभी साधकों को अपनी रीढ़ की हड्डी को अर्थात् कमर को अधिक से अधिक समय तक सीधा रखने का प्रयत्न करना अनिवार्य है। रीढ़ की हड्डी को जो व्यक्ति, जो साधक चलते-फिरते, उठते-बैठते जितना अधिक सीधा रखेंगे उनके शरीर मन-मस्तिष्क क्रमश: जागृति चेतना प्रकाश में उतना आता जायेगा।


प्रश्न उठता है फिर क्या करें, कैसे बैठें, किस प्रकार पढ़ें और किस प्रकार क्या करें। इसके अन्तर में प्रत्यक्ष अनुसंधानों और अनुभवों से यह तथ्य सिद्ध हुआ है कि अध्ययन करने वाला व्यक्ति अपने मेरुदण्ड को अपने हर प्रयत्न के द्वारा, बिल्कुल सीधा रखते हुए, पुस्तक हाथ में लेकर सीधे बैठकर, अपना पाठ याद करें। इससे निश्चित रूप से उसकी याद करने की शक्ति क्रमश: बढ़ती जायेगीसीधे बैठने के सकता ह आप कुसी या तख्त पर भी लिए चौकड़ी मारकर भी सीधा बैठा जा सकता है और कुर्सी या तख्त पर भी अपने कमर को सीधा रखते हुए, अपना अध्ययन कार्य और अन्य कार्य कर सकते हैं। आप प्रत्यक्ष रूप से उसी समय अनुभव करेंगे कि अपने मेरुदण्ड को सीधा करने के फलस्वरूप, आपके सम्पूर्ण मन-मस्तिष्क स्नायुमंडल और शरीर में जागृति चेतना आ गई है ।


साथ ही आलस्य दूर भाग गया है और ऐसा अभ्यास करने वाले को उसके उद्देश्य में सफलता प्राप्त हो रही है। इस प्रकार कमर को सीधा करने का ज्यों ज्यों अभ्यास बढ़ता जायेगा त्यों-त्यों साधक में सौन्दर्य, शक्ति चेतना, स्फूर्ति, शान्ति एव दिव्यता बढ़ती जा रही है। उसके साथ-साथ ही उपरोक्त प्रयोग करने वाले की इच्छाशक्ति, विचारशक्ति, संकल्पशक्ति, विल पॉवर क्रमशः अभ्यास के साथ-साथ तीव्रता से बढ़ती जायेगी।


परिणाम-स्वरूप साधना के सम्पूर्ण आन्तरिक एवम् बाह्य व्यक्तित्व का अद्भुत विकास दृष्टिगोचर होने लगेगा और उसका जीवन रीढ़ की हड्डी के इस सीधा रखने वाले केवलमात्र अभ्यास से ही बिना किसी जन्तर- मन्तर के, करने वाले में एक अनोखी प्रतिभा का जन्म परिलक्षित होने लगेगाऐसा चमत्कार इसलिए संभव हो पाता है क्योंकि साधक के मेरुदण्ड में योग विज्ञान में वर्णित मूलाधार चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र, नाभि चक्र, हृदय चक्र एवं कण्ठ चक्र आदि विशेष रूप से व्यवस्थित हैं और मेरुदण्ड को सीधा रखने के फलस्वरूप इन चक्रों में संसार की विशेष महत्वपूर्ण ऊर्जाशक्ति, चेतनाशक्ति का अभ्यास- कर्ता के विचार के द्वारा विशेष रूप से संचरण होने लगता है। प्रबल इच्छा शक्ति उच्चकोटि के मानसिक चिन्तन, मनन, ध्यान आदि के लगातार अभ्यास से इन शक्ति पुंज दिव्य कंपनों से अभिभूत इन योग चक्रों में विशेष प्रकार की पकड़ता जाता है।


फलतः प्रयोगकर्ता चमत्कार... विद्युत का संचरण धीरे-धीरे जोर पकड़ता जाता है। फलतः प्रयोगकर्ता के अन्दर कई प्रकार की विशेषतायें उत्पन्न हो जाती हैं। इन विशेषताओं को सफलता की कुंजी का नाम दिया जा सकता है। ऐसे प्रयोगकर्ताओं में दृढ विश्वास, सहानुभूति, अदम्य उत्साह, प्रबल इच्छाशक्ति, सहज स्वभाव, श्रद्धा, विश्वास आदि सद्गुणों के साथ-साथ दूरदर्शिता और इसके साथ-साथ भविष्य में होने वाली वार्ताओं, घटनाओं के सम्बन्ध में पूर्वाभास हो लगेगा। मन-मस्तिष्क में भविष्य की परिकल्पना कल्पना के रूप में साकार होने लगेगी। साधक का मन-मस्तिष्क केवल रीढ़ की हड्डी को सीधा रखने के अभ्यास के द्वारा, ऐसी शक्ति का उदय हो जायेगा जिससे उसका मन-मस्तिष्क पहले से कहने अथवा बताने लगेगा, जिसे आभास होने लगेगा कि ऐसा कुछ इस प्रकार घटित होने जा रहा है।


उदाहरण के लिए इस प्रकार जानिये एक विद्यार्थी को ऐसा परीक्षा से पूर्व ही आभास होने लगे कि अमूक-अमूक प्रश्न जो मैंने पढ़े हैं और मनन किये हैं परीक्षा में अवश्य आयेगे। साधक की यह परिकल्पना सत्य ही नहीं शतप्रतिशत सत्य होगी। इसी भाँति दूसरे अन्य सांसारिक विषयों में भी रीढ़ की हड्डी की साधना करने वाले व्यक्तियों को ऐसे ही और इससे मिलते-जुलते कई प्रकार के रहस्यों का चमत्कारों का प्रत्यक्षीकरण साधना के साथ-साथ क्रमशः हो जायेगा।


बस आपके सतत् प्रयत्न के पथ पर चलते रहने की जरूरत है। यदि एक बार आप इस दिव्य ज्ञान से आलौकिक साधना के योगिक मार्ग पर चल पड़े तो फिर अभाव, दरिद्रता, निराशा, निरुत्साह, असफलता और सभी प्रकार के दुःखों, कष्टों की क्या मजाल जो आपके समक्ष या आपके विघ्न बनने का दःस्साहस कर सके।